Saturday 24 November 2012

Dil - दिल


तुम ही समझ जाओ दिल की मजबूरी 
ये दिल तो समझता नहीं समझाए से

दिल तो कहता है कि मैं तुम पे ऐतबार करूँ 
पर इस दिल का कौन ऐतबार करे .....

क्या बताएँ दिल हा हाल 
जब से तुम्हारा हुआ है 
ये कमबख्त 
तुम्हारी ही तरह 
न फ़रमाँ हो गया

अब रंज किस बात का है 
किस बात कि शिकायत है 
दिल का टूट के बिखर जाना 
ये तो इश्क में रिवायत है

हाल-ए-दिल सुना आए 
सज़ा-ए-दिल सुन आए

तुम बुरा न माना करो दिल की बातो का 
बस मान जाया करो, जो भी ये कहता है

झूठे सही तेरे वादे, दिल को सकूं तो देते हैं 
मुरझाये हुए फूल भी खुशबू तो देते हैं

ठुकरा के प्यार मेरा हँसते है हलके हलके 
खुद भी बदल गए वो मेरी ज़िन्दगी बदल के 
दो दिलों के दरमयां में ये जो पुल बना हुआ है 
मुझे डर है बह न जाए झपकी जो तूने पकले

0 comments:

Post a Comment

All Copyrights © Reserved by Neeraj Kaura. Powered by Blogger.