Saturday 24 November 2012

आहट

रात के पिछले पहर
दबे पाँव आ के मुझे जगाया जिस ने 
मेरा कातिल था,
कोई चोर था 
या कोई अपना था 
या वो तेरी याद थी , 
कोई ख़याल था 
या कोई सपना था 
मेरा नसीब था खोया हुआ 
या वहम था कोई 
या मेरे बीते हुए कल का
इक पल अहम् था कोई
या हो सकता है
हवा का कोई झोंका हो
मेरे घर के चिरागों न उसे रोका हो
या फिर हो सकता कि
वो सदा हो किसी तन्हाई की
या फिर ख़ामोशी भी हो सकती है
किसी रुसवाई की
रात के पिछले पहर
दबे पाँव आ के ..
मुझे जगाया जिस ने
मेरे सोचों की चादर ओढ़ के कही सो है गया
मेरे घर के किसी आईने में जा के खो है गया

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