Monday 26 November 2012

हवा का रुख

हवा के रुख को बदलता देख 
कईयों के चेहरे का रंग बदला
कईयों ने तो चेहरा बदल लिया
कई लोगों ने नजरें बदल लीं 
कईयों की बात का लहजा बदला 
कईओं अदब का सलीका बदला 
कईयों ने ईमान बदले
कुछ की नीयत, कुछ की तबियत
कुछ का अंदाज़ बदला
कल फिर हवा का रुख बदलेगा
जैसे है आज बदला

शहीद


किसी का चित्र नोटों पे
किसी का चिन्ह वोटो पे
शहीदों तुम ह्रदय में हो
तुम्हारा नाम होंठो पे .....
किसी के महल जनपथ पे
किसी का राज घाटों पे
शहीदों तुम ज़हन में हो
चरण की ख़ाक माथों पे .....
किसी के चित्र संसद में
कई हुए रत्न भारत के
शहीदों तुम रगों में हो
तुम हो रक्त भारत के .....
 

लक्ष्य

बाधाएँ द्रढ़ शक्ति देती है 
निराशा नहीं ...
परिश्रम ही लक्ष्य तक पहुँचाएगा
अभिलाषा नहीं....
यहाँ सब को संदेह ही संदेह है 
जिज्ञासा नहीं .... 
मुझे ज़िन्दगी का अर्थ समझना है 
परिभाषा नहीं ....

ना इंसाफ़ी

हर किसी को खुश रख पाना , मेरे बस की बात नहीं 
चाँद को सूरज बतलाना, मेरे बस की बात नहीं 
कभी-कभी तो मन करता है, तौबा करलूँ झगड़ों से 
पर ना इंसाफ़ी  सहते जाना मेरे बस की बात नहीं 
तुम चाहो तो साथ मेरा कभी भी छोड़ चले जाना 
मंजिल से पहले रुक जाना मेरे बस की बात नहीं 
समझ सको तो समझ लो मेरी आंखें क्या बतलाती हैं 
दिल की बाते बयां कर पाना मेरे बस की बात नहीं

Sunday 25 November 2012

पंचतत्व के स्वामी

तुम पंचतत्व के स्वामी हो .... 
क्यों 
हर क्ष्रण
और अधिक क्षीण 
हुए जा रहे हो 
परिस्थितियों के अधीन 
हुए जा रहे हो. .. 
वो क्या है .. जिसका 
तुम में अभाव है 
क्या बस समझौता करना ही 
तुम्हारा स्वभाव है ..
"आकाश, वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी "
से बने तुम
क्यों अँधेरा मिटाने को
भोर की प्रतीक्षा करते हो
अपने भीतर के अलोक का
उपयोग क्यों नहीं करते हो
अपने निष्क्रियता को क्यों
सूरज के माथे मढ़ते हो ..
वायु परितृप्त
प्रलय क्षम "तुम"
तुफानो से क्यों डरते हो
बहुत हो चूका भूमि सम धैर्य
अब शिथिल न रहो
उठो, चलो और सैलाब
के जैसे अपने मार्ग का
स्वयं निर्माण करो ..
निर्माण करो नए कल का
सर्जन करो एक नई द्रष्टि का
उठो कुछ ऐसा करो जिससे कल्याण हो
पूरी स्रष्टि का
तुम पंचतत्व के स्वामी हो ....

बस यूँही

वो दबे पाँव आँख बचा के निकल गया
और लोग वक़्त का इंतज़ार करते रहे !!!!

मेरी आँखों में वो कुछ इस तरहां से देख रहा था 
जैसे टूटे आईने के टुकड़ो में से खुद को बीन रहा हो

चाँद के चेहरे के दाग तो सब को नज़र आए
पर कोई तो हो जो सूरज से भी आँख मिलाए

गमलों में उगा रखी हैं 
मुसत्ख्बिल की फसलें 
वो ज़मीदार तो नहीं है 
पर न उम्मीद भी नहीं

वक़्त की तरह मैं बस चलता चला गया 
वो जो दरिया थे वो सागर में जा के सो गए

गुज़र गया एक और दिन 
पर वक़्त वहीं खड़ा है अभी 
बस अब ये न पूछना कि "कहाँ"

किसके नक्श-ए-पा पे चला जाए 
आजकल रहबर तो हवाओं में उड़ते हैं

मुझे बर्बाद करने वालो में कल ये भी शुमार था 
तो फिर ये "वक़्त" आज मुझ पे मेहरबान  क्यों है

असल तनहा वो है 
जो तन्हाई में भी तनहा हो 
भीड़ में तो सभी तनहा हुआ करते हैं

अभिनन्दन

सूरज को हर रास्ता पता है 
अँधेरे शहर का 
अंधकार उसे लक्ष्य से न 
भटका पाएगा
सुबह होने तक, सूर्य आकाश में 
आ ही जायेगा 
शान से जगमगाएगा 
तुम अभिनन्दन को तैयार रहो ...

आचरण

विखंडित विपक्ष है, निरंकुश सिंघासन है
आरोप के उत्तर में कुतर्क हैं, आश्वासन है
सदन की गरिमा का अनुमान क्या लगाएँ
निर्लज्ज आचरण है और निर्वस्त्र भाषण है
सविधान की सर्वोच्चता की रक्षा करने वाली
हर जिवाह कर्ण की है हर आँख दुशासन है
गरीबी का मारा शख्स गणित लगा रहा था
चार आने की ज़िन्दगी है रुपये का राशन है

गाँधारी

जब भी देखता हूँ 
इन्साफ की देवी की मूरत 
न जाने क्यों..
ऐसा लगता है कि "जानबूझ" के 
बाँध दी गई है ये काली पट्टी 
कस के आँखों पे - देख न पाए 
व्यवस्था के अत्याचार
सत्ता के अभिचारी षडयंत्र 
रसूकदार व्यभिचार 
होता रहे फैंसलो में विलंभ
....जब भी देखता हूँ
इन्साफ के देवी की मूरत
न जाने क्यों..
"गाँधारी" की याद आती है...
सबकुछ देख पाने की क्षमता होने पर भी
आँखों पे पट्टी ..बाँध लेना
किसी योजना को हिस्सा तो नहीं
भगवान् श्री कृष्ण को भी श्रापित करने वाली
ये आँखों पे बंधी पट्टी
न्याय संगत हो ही नहीं सकती.....

सूर्यास्त

सञ्चालन अस्त-व्यस्त 
जनता मंहगाई से त्रस्त 
जवानों के हौंसले पस्त 
प्रजातंत्र का मंदिर ध्वस्त 
संचार माध्यम सत्ता परस्त 
सत्ता भ्रष्टाचार ग्रस्त
आस्मिक सूर्यास्त !?

इब्तेता

अभी तो ये इब्तेता है मेरे जूनून की
अब तू खैर मनाना अपने सकून की 
इसी अँधेरे को जला के उजाला कर दूँगा
तुने देखि कहा है गर्मी मेरे खून की

जौक

कभी तो सब्र से काम लिया जाए
चंद लम्हे ख़ामोशी से जिया जाए
हर इक सवाल का जावाब होता है
पर ये ज़रूरी नहीं कि दिया जाए..
जौक जो ज़िन्दगी का चखना है
तो कतरा कतरा इसे पिया जाए

सहेलियाँ

इनकी बातें ख़त्म कहाँ होंगी 
रात और नींद दो सहेलियाँ हैं 
कोई सुलझा नहीं पाया इनको 
इश्क और जिस्त दो पहेलियाँ हैं

साएँ

वक़्त को करवट बदलता देख 
साएँ भी अपना रुख बदल लेते हैं
कभी अँधेरो में भी साथ चलते हैं 
कभी दिन में ही तनहा करे देते हैं

ज़ायका

कुछ यादें .. खट्टी-मीठी
बनारसी आम के जैसी
ज़हन में आती है तो
दिन का ज़ायका ही बदल जात है

दामन

लोग अंधेरो की तलाशी लेते रहे 
गुनाह उजालों में छुपा के रखे थे 
जाने कब बंध गए दामन से तेरे 
जो आँसू मैंने सीने में दबा के रखे थे

गुमराह

मन्जिल भटक गई
रस्ते भटके गए 
काफिलों के साथ साथ 
रहबर भटक गए 
गुमराह कौन है यहाँ .. कोई फैंसला करे

गहराइयाँ

मेरी आँखों सा वीरां कोई, 
सहरा क्या होगा 
और आँसू के कतरे जितना, 
गहरा क्या होगा 
बस दस्तक दी होगी दिल पे, 
ठहरा क्या होगा 
इससे ज्यादा मेरी सोचों पर 
पहरा क्या होगा
हम से हट कर गुलामो का 
चेहरा क्या होगा 
अब इससे ज्यादा कोई गूँगा, 
बहरा क्या होगा

इरादे

अपने सायों को ज़रा कस के पकडे रहना 
अबके अंधेरो के इरादे और भी बदतर हैं
उजाले काँच के फानूस की हिफाज़त में हैं 
और मैंने हवाओं के हाथों में देखे पत्थर हैं

फुर्सत

जो उसे याद रहे तो
वो हर वादा निभाता है
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दिल का बुरा नहीं
बस दिल की सुनता नहीं 
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दोस्त है
अभी जान पहचान होना बाकी है
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आज फुर्सत में हूँ
सो चलता हूँ
कभी वक़्त मिला तो बात करेंगे

गुनाह

जो कर नहीं पाए ,
ज़िन्दगी ..उन गुनाहों कि भी सजा देती है
जब लोग ना हक तोहमते लगाते हैं
खुद्दारी बेबाक हो के मुस्कुरा दती है
बस इक ख्वाइश खुश रहने कि
रुला देती है
बस कि इक कोशिश जिंदा रहने की
जाँ ले लेती है
जो कर नहीं पाए ,
ज़िन्दगी ..उन गुनाहों कि भी सजा देती है ....

शिकायते

तुम जितना सजा लोगे इसको 
ये दुनिया उतनी खूबसूरत है 
कोई उतना ही चाहेगा तुम्हें 
जिसे जितनी तेरी ज़रुरत है 
यहाँ मतलब के हैं रिश्ते-नाते 
पर फिर भी सब निभते जाते 
चलो दिल को दुखाने को ही सही 
तुम्हें लोग तो हैं मिलने आते 
इसकी खामियाँ न गिना कारो 
यूँ शिकायते न किया करो 
ये ज़िन्दगी जैसी भी है 
इसे सर उठा के जिया करो ...

न कहो

जिस हाल में अच्छा हूँ मुझे बिकने को न कहो 
इस दुनिया के जैसा बनावटी दिखने को न कहो 
जो बच्चो से उनकी मासूमियत तक छीन ले गईं 
उन फिजाओं को सुहाना मुझे लिखने को न कहो

फाँसले

फाँसले  कुछ कम हुए पर दूरियाँ बढती गईं
कोशिशें तो की मगर मजबूरियाँ बढती गईं
नसीब के हाथों शिकस्त मिलती रही वक़्त को 
ज्यों ज्यों दिन चढ़ता गया बेनूरियाँ बढती गईं

फितरत

जिसकी फितरत में, लहजे में जी-हजूरी है 
ग़ुलाम रहना उस शख्स की मजबूरी है
हाँ ! मैं बदमिजाज हूँ पर बदतमीज़ नहीं 
इतनी सी तल्खी, आज के दौर में ज़रूरी

Saturday 24 November 2012

आहट

रात के पिछले पहर
दबे पाँव आ के मुझे जगाया जिस ने 
मेरा कातिल था,
कोई चोर था 
या कोई अपना था 
या वो तेरी याद थी , 
कोई ख़याल था 
या कोई सपना था 
मेरा नसीब था खोया हुआ 
या वहम था कोई 
या मेरे बीते हुए कल का
इक पल अहम् था कोई
या हो सकता है
हवा का कोई झोंका हो
मेरे घर के चिरागों न उसे रोका हो
या फिर हो सकता कि
वो सदा हो किसी तन्हाई की
या फिर ख़ामोशी भी हो सकती है
किसी रुसवाई की
रात के पिछले पहर
दबे पाँव आ के ..
मुझे जगाया जिस ने
मेरे सोचों की चादर ओढ़ के कही सो है गया
मेरे घर के किसी आईने में जा के खो है गया

Dil - दिल


तुम ही समझ जाओ दिल की मजबूरी 
ये दिल तो समझता नहीं समझाए से

दिल तो कहता है कि मैं तुम पे ऐतबार करूँ 
पर इस दिल का कौन ऐतबार करे .....

क्या बताएँ दिल हा हाल 
जब से तुम्हारा हुआ है 
ये कमबख्त 
तुम्हारी ही तरह 
न फ़रमाँ हो गया

अब रंज किस बात का है 
किस बात कि शिकायत है 
दिल का टूट के बिखर जाना 
ये तो इश्क में रिवायत है

हाल-ए-दिल सुना आए 
सज़ा-ए-दिल सुन आए

तुम बुरा न माना करो दिल की बातो का 
बस मान जाया करो, जो भी ये कहता है

झूठे सही तेरे वादे, दिल को सकूं तो देते हैं 
मुरझाये हुए फूल भी खुशबू तो देते हैं

ठुकरा के प्यार मेरा हँसते है हलके हलके 
खुद भी बदल गए वो मेरी ज़िन्दगी बदल के 
दो दिलों के दरमयां में ये जो पुल बना हुआ है 
मुझे डर है बह न जाए झपकी जो तूने पकले
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