कुछ यादें .. खट्टी-मीठी
बनारसी आम के जैसी
ज़हन में आती है तो
दिन का ज़ायका ही बदल जात है
बनारसी आम के जैसी
ज़हन में आती है तो
दिन का ज़ायका ही बदल जात है
अपने तारुफ्फ़ में बस इतना ही कह पाऊँगा ..................... कि जब तक भी जियूँगा जिंदा नज़र आऊँगा !!
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