Sunday 25 November 2012

फितरत

जिसकी फितरत में, लहजे में जी-हजूरी है 
ग़ुलाम रहना उस शख्स की मजबूरी है
हाँ ! मैं बदमिजाज हूँ पर बदतमीज़ नहीं 
इतनी सी तल्खी, आज के दौर में ज़रूरी

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