लोग मेरी मुफलसी से भी उम्मीदें लगाये बैठे हैं
हरदम मेरे कांसे पे अपनी नज़रे जमाए बैठे हैं
वो जो देते फिरते हैं नसीहत मुहब्बतों की हमें
वफाओं कि मंडी में अपनी दुकान सजाए बैठे हैं
एक मैं ही हूँ जो चाँद के दीदार को तरसता हूँ
वरना यहाँ लोग तो कब के ईद मनाए बैठे हैं
हरदम मेरे कांसे पे अपनी नज़रे जमाए बैठे हैं
वो जो देते फिरते हैं नसीहत मुहब्बतों की हमें
वफाओं कि मंडी में अपनी दुकान सजाए बैठे हैं
एक मैं ही हूँ जो चाँद के दीदार को तरसता हूँ
वरना यहाँ लोग तो कब के ईद मनाए बैठे हैं