Sunday 25 November 2012

पंचतत्व के स्वामी

तुम पंचतत्व के स्वामी हो .... 
क्यों 
हर क्ष्रण
और अधिक क्षीण 
हुए जा रहे हो 
परिस्थितियों के अधीन 
हुए जा रहे हो. .. 
वो क्या है .. जिसका 
तुम में अभाव है 
क्या बस समझौता करना ही 
तुम्हारा स्वभाव है ..
"आकाश, वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी "
से बने तुम
क्यों अँधेरा मिटाने को
भोर की प्रतीक्षा करते हो
अपने भीतर के अलोक का
उपयोग क्यों नहीं करते हो
अपने निष्क्रियता को क्यों
सूरज के माथे मढ़ते हो ..
वायु परितृप्त
प्रलय क्षम "तुम"
तुफानो से क्यों डरते हो
बहुत हो चूका भूमि सम धैर्य
अब शिथिल न रहो
उठो, चलो और सैलाब
के जैसे अपने मार्ग का
स्वयं निर्माण करो ..
निर्माण करो नए कल का
सर्जन करो एक नई द्रष्टि का
उठो कुछ ऐसा करो जिससे कल्याण हो
पूरी स्रष्टि का
तुम पंचतत्व के स्वामी हो ....

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