जुगनू मुट्ठी में पकड़ा
फिर मुट्ठी को फूँक मारी
जुगनू तारा बना गया
फिर तारे को हवा में उछाला
आसमान में सजा दिया
पूरी रात यूँही करता रहा
थक गया कल रात तो ....
अब दीवाने को सोने दो ..
फिर मुट्ठी को फूँक मारी
जुगनू तारा बना गया
फिर तारे को हवा में उछाला
आसमान में सजा दिया
पूरी रात यूँही करता रहा
थक गया कल रात तो ....
अब दीवाने को सोने दो ..
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हर सुबह उठ के खुद से नजरें मिला पाता हूँ
बस इसी में खुश हूँ और बेख़ौफ़ जिए जाता हूँ
बस इसी में खुश हूँ और बेख़ौफ़ जिए जाता हूँ
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रगिज़ न बचेगा उसे जानलेवा बिमारी है
उसकी फितरत में शराफत है इमानदारी है
मन में कुछ हो तो चेहरे से झलक जाता हैं
बस साफगोई की ये आदत बुरी हमारी है
जिनसे दिल नहीं मिलता उनसे गले मिलो
भई हमें नहीं सीखनी कोई ऐसी अदाकारी है
उसकी फितरत में शराफत है इमानदारी है
मन में कुछ हो तो चेहरे से झलक जाता हैं
बस साफगोई की ये आदत बुरी हमारी है
जिनसे दिल नहीं मिलता उनसे गले मिलो
भई हमें नहीं सीखनी कोई ऐसी अदाकारी है
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सन्नाटा नहीं अब सकून चाहिए
जोश तो बड़ा है अब जनून चाहिए
कब तलक ये अश्कों का बसेरा रहे
इन आँखों में उतरना अब खून चाहिए
सरमायेदारों की जेबों में रहता है जो
फूँक देना हर ऐसा कानून चाहिए
जोश तो बड़ा है अब जनून चाहिए
कब तलक ये अश्कों का बसेरा रहे
इन आँखों में उतरना अब खून चाहिए
सरमायेदारों की जेबों में रहता है जो
फूँक देना हर ऐसा कानून चाहिए
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सब मसरूफ हैं ग़म में अपने
हाल किसी का पूछे कौन
कौन महफूज़ है घर में अपने
हाल किसी का पूछे कौन
जब हाकिम ही मजबूर हैं अपने
हाल किसी का पूछे कौन
हाल किसी का पूछे कौन
कौन महफूज़ है घर में अपने
हाल किसी का पूछे कौन
जब हाकिम ही मजबूर हैं अपने
हाल किसी का पूछे कौन
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बड़ी मीठी जुबान वालों से मुझे डर सा लगता है
बड़ी ऊँची उड़ान वालों से मुझे डर सा लगता है
जज्बातों की तिजारत कभी आई नहीं मुझे
रिश्तों के दुकानदारों से मुझे डर सा लगता है
बड़ी ऊँची उड़ान वालों से मुझे डर सा लगता है
जज्बातों की तिजारत कभी आई नहीं मुझे
रिश्तों के दुकानदारों से मुझे डर सा लगता है
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ऐसा खोया दुनिया की भीड़ में वो
अब हर आईने में खुद को ढूँढता है
अब हर आईने में खुद को ढूँढता है
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अजीब सौदागर था जो तकदीरें बेचता था
पुतलों को भी जंग लगी शमशीरें बेचता था
फनकार कहाँ होगा "नीरज" सा और कोई
लफ़्ज़ों पे कुरेद करके तस्वीरें बेचता था
पुतलों को भी जंग लगी शमशीरें बेचता था
फनकार कहाँ होगा "नीरज" सा और कोई
लफ़्ज़ों पे कुरेद करके तस्वीरें बेचता था
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चलो छोड़ो ज़माने वालों को
बेवजह दिल दुखाने वालो को
मेरे रस्तो की खबर दे आओ
राह में काँटे बिछाने वालो को
दस्तारें खैरात में नहीं मिलती
बतला दो सर झुकाने वालो को
बेवजह दिल दुखाने वालो को
मेरे रस्तो की खबर दे आओ
राह में काँटे बिछाने वालो को
दस्तारें खैरात में नहीं मिलती
बतला दो सर झुकाने वालो को
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जब मैं नींद से जागा तो पाँव में छाले थे
ख्वाबो की आवारगी और वो भी इस कदर
मियाँ मासूम तो नहीं हूँ पर नादान भी नहीं
बस वाइज़ की बातों से मुझे लगता है थोडा डर
ख्वाबो की आवारगी और वो भी इस कदर
मियाँ मासूम तो नहीं हूँ पर नादान भी नहीं
बस वाइज़ की बातों से मुझे लगता है थोडा डर
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वो जो मेरे दिल के करीब रहते हैं
वो मेरी बातों को अजीब कहते हैं
जब से मेरा सर कटा है दोस्त मेरे
मेरी बाहों को सलीब कहते हैं
काश तुम जैसा हमें भी दोस्त मिले
ये मुझसे मेरे रकीब कहते हैं
वो मेरी बातों को अजीब कहते हैं
जब से मेरा सर कटा है दोस्त मेरे
मेरी बाहों को सलीब कहते हैं
काश तुम जैसा हमें भी दोस्त मिले
ये मुझसे मेरे रकीब कहते हैं
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मौलवी जी बोले "खुदा गवाह है "
चोर बोला "तो मुनसिब कौन है ?"
चोर बोला "तो मुनसिब कौन है ?"
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एक एक करके दोस्त सब किनारा कर गए
बेवफाई की तोहमतों से मेरी झोली भर गए
आसमां में रात भर कोई टहलने नहीं आया
मौसम कि बदमिजाजी से तारे भी डर गए
मैं आवारा हूँ सो वीराने ही हैं मेरे नसीब में
तुम कहो तुम क्यों नहीं अभी अपने घर गए
पूछे जो मेरे बारे में यहाँ आके कभी कोई
कहे देना कि तुम्हें ढूँढ़ते न जाने किधर गए
बेवफाई की तोहमतों से मेरी झोली भर गए
आसमां में रात भर कोई टहलने नहीं आया
मौसम कि बदमिजाजी से तारे भी डर गए
मैं आवारा हूँ सो वीराने ही हैं मेरे नसीब में
तुम कहो तुम क्यों नहीं अभी अपने घर गए
पूछे जो मेरे बारे में यहाँ आके कभी कोई
कहे देना कि तुम्हें ढूँढ़ते न जाने किधर गए
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खूबसूरत है, दिलकश है, रंगीन भी
ये दुनिया दिखने में तो है हसीन सी
बस आदत हो गयी सो जिए जाते हैं
ज़िन्दगी बन के रह गई है अफीम सी
ये दुनिया दिखने में तो है हसीन सी
बस आदत हो गयी सो जिए जाते हैं
ज़िन्दगी बन के रह गई है अफीम सी
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अंधेरो के झाँसे में आ जाते है
लोग चिरागों से शर्ते लगाते हैं
जाने क्या हो गया भरोसो को
बस ज़रा से ठेस से टूट जाते है
जो ज़मीन के काबिल नहीं होते
वो लोग हवाओं में घर बनाते है
यूँ गर्दने ऐंठ के जो चलते हैं
पाँव उनके ही लड़खड़ाते हैं
मेरी बातो से उन्हें इत्तेफाक नहीं
पर मेरी ग़ज़लें गुनगुनाते हैं
लोग चिरागों से शर्ते लगाते हैं
जाने क्या हो गया भरोसो को
बस ज़रा से ठेस से टूट जाते है
जो ज़मीन के काबिल नहीं होते
वो लोग हवाओं में घर बनाते है
यूँ गर्दने ऐंठ के जो चलते हैं
पाँव उनके ही लड़खड़ाते हैं
मेरी बातो से उन्हें इत्तेफाक नहीं
पर मेरी ग़ज़लें गुनगुनाते हैं
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ज़माने की निगाहों में रहना है तो संभल के रहना
कहीं गिर गए तो फिर बाद में न मुझ से कहना
चाहता तो हूँ कि बस चुप चाप सब कुछ देखा करूँ
पर मेरी फितरत में ही नहीं जोर-ज़बर को सहना
कहीं गिर गए तो फिर बाद में न मुझ से कहना
चाहता तो हूँ कि बस चुप चाप सब कुछ देखा करूँ
पर मेरी फितरत में ही नहीं जोर-ज़बर को सहना
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बाधाएँ द्रढ़ शक्ति देती है
निराशा नहीं ...
परिश्रम ही लक्ष्य तक पहुँचाएगा
अभिलाषा नहीं....
यहाँ सब को संदेह ही संदेह है
जिज्ञासा नहीं ....
मुझे ज़िन्दगी का अर्थ समझना है
परिभाषा नहीं ....
निराशा नहीं ...
परिश्रम ही लक्ष्य तक पहुँचाएगा
अभिलाषा नहीं....
यहाँ सब को संदेह ही संदेह है
जिज्ञासा नहीं ....
मुझे ज़िन्दगी का अर्थ समझना है
परिभाषा नहीं ....
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कुछ सवाल हुए कुछ जवाब हुए
और फिर कुछ ख्वाब बेनकाब हुए
कुछ रिश्तों की भी है ताबीर हिली
जब कभी वफाओं के हैं हिसाब हुए
और फिर कुछ ख्वाब बेनकाब हुए
कुछ रिश्तों की भी है ताबीर हिली
जब कभी वफाओं के हैं हिसाब हुए
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वो मेरे पास बस यूँही तो नहीं आया होगा
कुछ तो हैं उसने जो मुझसे कभी चाहा होगा
ज्यादा बोलना माना कि उसकी फितरत में नहीं
पर उसकी ख़ामोशी ने तुम्हें कुछ तो बताया होगा
उसकी मुस्कराहट में तन्ज़ सा दिखा मुझको
ज़रूर किसी बात का ऐतराज़ जताया होगा
चलो छोड़ो, क्या बुरा मानना उसकी बेवफाई का
ये दस्तूर ए दोस्ती है सो उसने भी निभाया होगा
कुछ तो हैं उसने जो मुझसे कभी चाहा होगा
ज्यादा बोलना माना कि उसकी फितरत में नहीं
पर उसकी ख़ामोशी ने तुम्हें कुछ तो बताया होगा
उसकी मुस्कराहट में तन्ज़ सा दिखा मुझको
ज़रूर किसी बात का ऐतराज़ जताया होगा
चलो छोड़ो, क्या बुरा मानना उसकी बेवफाई का
ये दस्तूर ए दोस्ती है सो उसने भी निभाया होगा
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मैं तो यूँ चुप हूँ कि अब मुझे उससे कोई आस नहीं
वो समझता हैं उसकी बेवफाई का मुझे अहसास नहीं
वो जो मेरी ऊँगली पकड़ सीखे चलना, मेरे तवारुख में
बस इतना कहते हैं कि इक दोस्त है पर कोई ख़ास नहीं
वो समझता हैं उसकी बेवफाई का मुझे अहसास नहीं
वो जो मेरी ऊँगली पकड़ सीखे चलना, मेरे तवारुख में
बस इतना कहते हैं कि इक दोस्त है पर कोई ख़ास नहीं
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ख्वाहिशें, शिकायतें, उम्मीदें बेबस नज़र आती हैं
तब इक अरसे की सोच अल्फाजो में ढल जाती है
हाँ .. एक क्षणिका, क्षण में लिखी जाती है
तब इक अरसे की सोच अल्फाजो में ढल जाती है
हाँ .. एक क्षणिका, क्षण में लिखी जाती है
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नीयत अच्छी हो
तो बुरा वक़्त नहीं टिक पाता है ...
सच के होम में
झूठ भस्म हो जाता है ....
हों बुलंद हौंसले
तो तकदीरें बदल जाती हैं .....
साथ अपनों का हो
तो सफ़र घर सा नज़र आता है ....
तेरी रहमत हुई तो
वो इक ज़र्रा आफताब बना .....
वरना फलक में
यूँ कौन नज़र आता है .......
तो बुरा वक़्त नहीं टिक पाता है ...
सच के होम में
झूठ भस्म हो जाता है ....
हों बुलंद हौंसले
तो तकदीरें बदल जाती हैं .....
साथ अपनों का हो
तो सफ़र घर सा नज़र आता है ....
तेरी रहमत हुई तो
वो इक ज़र्रा आफताब बना .....
वरना फलक में
यूँ कौन नज़र आता है .......
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"वक़्त" बदलता रहता है वक़्त के साथ
पर कुछ लोग ज़्यादा ही बदल जाते हैं
वक़्त की रफ़्तार पकड़ते पकड़ते
शायद वक़्त से भी आगे निकल जाते हैं
पर कुछ लोग ज़्यादा ही बदल जाते हैं
वक़्त की रफ़्तार पकड़ते पकड़ते
शायद वक़्त से भी आगे निकल जाते हैं
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मैं कह ही कहाँ पाया बात अपने दिल की
पर वो जान भी गए और बुरा मान भी गए
मेरे कलाम पढ़ के वो जो यूँ मुस्कुरा रहे हैं
लगता हैं मेरे इरादों को वो पहचान ही गए
पर वो जान भी गए और बुरा मान भी गए
मेरे कलाम पढ़ के वो जो यूँ मुस्कुरा रहे हैं
लगता हैं मेरे इरादों को वो पहचान ही गए
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दिवारे गिराता रहूँ ,
पुल बुनता रहूँ
कारवां से आगे चलता रहूँ
राह से सब काँटे चुनता रहूं ~~
कारवां से आगे चलता रहूँ
राह से सब काँटे चुनता रहूं ~~
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इक दूजे को कभी समझ ही नहीं पाए
जाने क्या इक दूजे से चाहते रहे ....
मैं और मेरी ज़िन्दगी..
जाने क्या इक दूजे से चाहते रहे ....
मैं और मेरी ज़िन्दगी..
आपस में टकराते रहे
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भरोसा बाजुओं पे हो तो फिर तकदीरो से क्या डरना |
जो सीने में नहीं है दम, धड़कते दिल का क्या करना |
जो सीने में नहीं है दम, धड़कते दिल का क्या करना |
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ज़हन में कुछ और ही है इन दिनों
ख्वाहिशें मुँहजोर सी हैं इन दिनों
रातों कि स्याही अब इनसे मिटती नहीं
थकी थकी हर भोर सी है इन दिनों
सबकी आँखों में ही कुछ सवाल हैं
तोहमतो का दौर ही है इन दिनों
अब कहाँ अल्फाजो में वो जुम्बिश रही
कलम भी कमज़ोर सी हैं इन दिनों .......................
ख्वाहिशें मुँहजोर सी हैं इन दिनों
रातों कि स्याही अब इनसे मिटती नहीं
थकी थकी हर भोर सी है इन दिनों
सबकी आँखों में ही कुछ सवाल हैं
तोहमतो का दौर ही है इन दिनों
अब कहाँ अल्फाजो में वो जुम्बिश रही
कलम भी कमज़ोर सी हैं इन दिनों .......................
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हर किसी को खुश रख पाऊँ, मेरे बस की बात नहीं
चंदा को सूरज बतलाऊँ मेरे बस की बात नहीं
कभी कभी तो मन करता है छोड़ दूँ सबसे लड़ना मैं
पर अन्याय को सहता जाऊं मेरे बस की बात नहीं
तुम चाहो तो साथ मेरा कभी भी छोड़ चले जाना
मंजिल से पहले रुक जाऊं मेरे बस की बात नहीं
समझ सको तो समझ लो मेरी आंखें क्या बतलाती हैं
दिल की बाते बयां कर पाऊँ मेरे बस की बात नहीं
चंदा को सूरज बतलाऊँ मेरे बस की बात नहीं
कभी कभी तो मन करता है छोड़ दूँ सबसे लड़ना मैं
पर अन्याय को सहता जाऊं मेरे बस की बात नहीं
तुम चाहो तो साथ मेरा कभी भी छोड़ चले जाना
मंजिल से पहले रुक जाऊं मेरे बस की बात नहीं
समझ सको तो समझ लो मेरी आंखें क्या बतलाती हैं
दिल की बाते बयां कर पाऊँ मेरे बस की बात नहीं
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पढ़ तो लेता हूँ सबकुछ पर मुझे लिखना नहीं आता
अपने वुजूद से छोटा या बड़ा मुझे दिखना नहीं आता
है कौन हल्का है क्या भारी हमेशा सच ही तोलूँगा
मैं वो काँटा हूँ तराजू का जिसे बिकना नहीं आता
अपने वुजूद से छोटा या बड़ा मुझे दिखना नहीं आता
है कौन हल्का है क्या भारी हमेशा सच ही तोलूँगा
मैं वो काँटा हूँ तराजू का जिसे बिकना नहीं आता
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बेवजह ज़िन्दगी में, कुछ नहीं होता
तो बेवजह क्यों है तू परेशाँ होता
बेवजह तोहमतें हैं क्यों लगती
शख्स कोई बेवजह है क्यों रोता
बेवजह किस बात की उदासी है
बेवजह दुनिया क्यों खफा सी है
बेवजह बाते क्यों करते हैं लोग
बेवजह खुद से क्यों डरते हैं लोग
बेवजह किस खातिर तरसते हैं लोग
बेवजह उम्मीद सी क्यों जग जाती है
बेवजह क्यों ज़िन्दगी लुभाती है
और ये मौत क्यों बेवजह आती है .......
बेवजह ज़िन्दगी में.. कुछ नहीं होता
तो बेवजह क्यों है तू परेशाँ होता
बेवजह तोहमतें हैं क्यों लगती
शख्स कोई बेवजह है क्यों रोता
बेवजह किस बात की उदासी है
बेवजह दुनिया क्यों खफा सी है
बेवजह बाते क्यों करते हैं लोग
बेवजह खुद से क्यों डरते हैं लोग
बेवजह किस खातिर तरसते हैं लोग
बेवजह उम्मीद सी क्यों जग जाती है
बेवजह क्यों ज़िन्दगी लुभाती है
और ये मौत क्यों बेवजह आती है .......
बेवजह ज़िन्दगी में.. कुछ नहीं होता
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रात अमावास की,
को मुँह चिढ़ाती है |
ये जो उम्मीद के दिए में
इक धैर्य की बाती है ....
हर राह आसां है,
हर काम मुमकिन है
वो रब्ब तेरा राखा है
जो तू सत्य का साथी है
को मुँह चिढ़ाती है |
ये जो उम्मीद के दिए में
इक धैर्य की बाती है ....
हर राह आसां है,
हर काम मुमकिन है
वो रब्ब तेरा राखा है
जो तू सत्य का साथी है
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अब क्या करे धरती ??
जिनकी भूख ये मिटाती है
उनकी नियत नहीं भरती !!!
जिनकी भूख ये मिटाती है
उनकी नियत नहीं भरती !!!
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हर सुबह चढ़ता सूरज कुछ समझाता है
बाग़ में हर खिलता फूल हमें बताता है
वक़्त कभी एक सा नहीं रहता
बुरा जाता है, तो अच्छा आता है
अपने सपनो को अपनी आँखों में पलने दो
खुद को हालत की अग्नि में न जलने दो
अपने विश्वास को जिन्दा रक्खो
उम्मीदों को ख़ुदकुशी न करने दो
बाग़ में हर खिलता फूल हमें बताता है
वक़्त कभी एक सा नहीं रहता
बुरा जाता है, तो अच्छा आता है
अपने सपनो को अपनी आँखों में पलने दो
खुद को हालत की अग्नि में न जलने दो
अपने विश्वास को जिन्दा रक्खो
उम्मीदों को ख़ुदकुशी न करने दो
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दम घुटता है बन के साँस जब ये आती हैं
ताज़ी हवाएँ कितनी ज़हरीली हुई जाती हैं
ताज़ी हवाएँ कितनी ज़हरीली हुई जाती हैं
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