गरीब का मज़हब तो बस फकत गरीबी है
उसको कोटे में मिलती आई बदनसीबी है
नीले-पीले कार्ड पहचान हैं
ख्वाबो पे खुला अनुदान है
हर लेखानुदान में ज़िक्र है इनका
हर भूखी आँख को फ़िक्र है इनका
इनके होने से तो जिंदा ये सरकारे हैं
बस इनके वास्ते संसद में सब तकरारे हैं
सब यही चाहते हैं की ये धर्म बढ़ता रहे
गरीब की दुआं से इनका घर भरता रहे
उसको कोटे में मिलती आई बदनसीबी है
नीले-पीले कार्ड पहचान हैं
ख्वाबो पे खुला अनुदान है
हर लेखानुदान में ज़िक्र है इनका
हर भूखी आँख को फ़िक्र है इनका
इनके होने से तो जिंदा ये सरकारे हैं
बस इनके वास्ते संसद में सब तकरारे हैं
सब यही चाहते हैं की ये धर्म बढ़ता रहे
गरीब की दुआं से इनका घर भरता रहे
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आज वो गलियाँ तंग नज़र आने लगी
जिन गलियों में कभी नंगे पाँव खेले थे
जिन मोहल्लों में हर शाम लगते मेले थे
जब अपनी कार से बाहर नज़र दौड़ाते हैं
आज वो लोग जमा भीड़ नज़र आते हैं
उम्र के साथ-साथ खेल बड़े होते रहे
कद के साथ, ठाठ और गरूर बढ़ा
ज़रूरते बढती गईं, मजबूरियाँ बढ़ती गई
पुराने पड़ौसी के घर से दूरियाँ बढती गईं
अपने परिचय से उन्हें शर्म सी है आने लगी
आज वो गलियाँ उन्हें तंग नज़र आने लगी
जिन गलियों में कभी नंगे पाँव खेले थे
जिन मोहल्लों में हर शाम लगते मेले थे
जब अपनी कार से बाहर नज़र दौड़ाते हैं
आज वो लोग जमा भीड़ नज़र आते हैं
उम्र के साथ-साथ खेल बड़े होते रहे
कद के साथ, ठाठ और गरूर बढ़ा
ज़रूरते बढती गईं, मजबूरियाँ बढ़ती गई
पुराने पड़ौसी के घर से दूरियाँ बढती गईं
अपने परिचय से उन्हें शर्म सी है आने लगी
आज वो गलियाँ उन्हें तंग नज़र आने लगी
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